किस शाम की उदासी
उतर आती है
क्यू रात भर
ठहर जाती है
क्यूं ये दिल सुलगता
रहता है
क्यू जिस्म दहकता
रहता है
क्यूं खिंजा के मौसम
नहीं बदलते
क्यूं बाहर कतरा के जाती है
किस शाम की उदासी
उतर आती है
…… सुधीर कुमार (आजिज़ी)….
किस शाम की उदासी
उतर आती है
क्यू रात भर
ठहर जाती है
क्यूं ये दिल सुलगता
रहता है
क्यू जिस्म दहकता
रहता है
क्यूं खिंजा के मौसम
नहीं बदलते
क्यूं बाहर कतरा के जाती है
किस शाम की उदासी
उतर आती है
…… सुधीर कुमार (आजिज़ी)….
क्यू चाहते हो बुझ जाए
ये प्यास जो मेरे अंदर है
कुछ पाने की जीने की सांसे भरने की प्यास
आसमा छूने की कुछ कर गुजरने की प्यास
क्यू चाहते हो बुझ जाए
एक प्यास ही तो है
बुझते ; सुलगते हमारे मुहब्बत के बीच
जो कभी तुम्हारी निगाह से उतरी थी मेरे दिल के आगोश में
फिर क्यूं चाहते हो बुझ जाए
एक प्यास ही तो है
जिससे लोग चलते सांसे भरते जिंदा रहते
वो प्यास ही जिससे ज़माना चलता है ‘….
…. फिर बदलता है रूप कोई…
क्यूं चाहते हो बुझ जाये
ये प्यास ,………..
.सुधीर कुमार “आजिज़ी”


शहद शहद ज़मी जैसे क्यूँ नहीं होते
कुछ लोग , आदमी के लिए
आदमी जैसे क्यूँ नहीं होते
इतनी नफरतें ज़ेहन में
कैसे पाल लेते हैं लोग
शाम- ए- शबनमी जैसे क्यूँ नहीं होते
कुछ लोग , आदमी के लिए
आदमी जैसे क्यूँ नहीं होते
जब भी सुनाता हूँ उन्हें
गम- ए- हालात अपने
वो आंखे शबनमी जैसे क्यूँ नहीं होते
कुछ लोग , आदमी के लिए
आदमी जैसे क्यूँ नहीं होते.
….. Sudhir Kumar…
😊😊😊😊
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