प्यास

क्यू चाहते हो बुझ जाए

ये प्यास जो मेरे अंदर है

कुछ पाने की जीने की सांसे भरने की प्यास

आसमा छूने की कुछ कर गुजरने की प्यास

क्यू चाहते हो बुझ जाए

एक प्यास ही तो है

बुझते ; सुलगते हमारे मुहब्बत के बीच

जो कभी तुम्हारी निगाह से उतरी थी मेरे दिल के आगोश में

फिर क्यूं चाहते हो बुझ जाए

एक प्यास ही तो है

जिससे लोग चलते सांसे भरते जिंदा रहते

वो प्यास ही जिससे ज़माना चलता है ‘….

…. फिर बदलता है रूप कोई…

क्यूं चाहते हो बुझ जाये

ये प्यास ,………..

.सुधीर कुमार “आजिज़ी”

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